होठों की हंसी देखे अंदर
नहीं देखा करते
किसी के गम का समंदर नहीं
देखा करते
कितनी हसीन है दुनियां लोग
कहा करते हैं
मर-मरके जीने वालों का मंजर
नहीं देखा करते
पास होकर भी दूर हैं उन्हें
छू नहीं सकते
बिगड़े मुकद्दर की नहीं
शिकवा करते
शीशे का मकां तो खूब मिला
करते हैं
समय के हाथ में पत्थर नहीं
देखा करते
‘राजीव’ देखा है वक्त का
मौसम खूब बदलते
नादां है जो वक्त के साथ
नहीं चला करते |