एक नहीं हजारों गम हैं किस
किसको कहेंगे
पहले भी हजारों सहे हैं इस
बार भी सहेंगे
जमाने के साथ कदम मिलाकर न
चल पाए
दोष खुद का हो तो औरों को
क्या कहेंगे
हथेली से रेत की मानिंद
फिसलती जाए है
जिंदगी क्या इस तरह गुजर न जाएंगे
तुम नहीं हम अकेले और बहती
दरिया है
सुनसान गीतों के छंद किनारे
पहुँच पाएंगे
‘राजीव’ फ़कत चुपचाप हैं पेड़
पत्ते बोलते हैं
दर्दे दिल की शमा आँधियों
से न बुझ जाएंगे |