Monday 3 October 2016

धड़कनें खामोश हैं






दूर क्यों हो पास आओ जरा
देखो गगन से मिल रही धरा

कलियां खिल रही कितने जतन से
चाँद की रौशनी से नहाओ जरा

धड़कनें खामोश हैं वक्त है ठहर गया
जो नजरें मिली कदम रुक सा गया

हठ बचपनों सा अब तो छोड़िए
मन का संबंध मन से जोड़िए

वक्त काफी हो गया ख़ामोशी तो तोड़िए
व्रत मौन का खिलखिलाकर तोड़िए

    

Sunday 25 September 2016

वक्त का मौसम




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होठों की हंसी देखे अंदर नहीं देखा करते
किसी के गम का समंदर नहीं देखा करते

कितनी हसीन है दुनियां लोग कहा करते हैं
मर-मरके जीने वालों का मंजर नहीं देखा करते

पास होकर भी दूर हैं उन्हें छू नहीं सकते
बिगड़े मुकद्दर की नहीं शिकवा करते

शीशे का मकां तो खूब मिला करते हैं
समय के हाथ में पत्थर नहीं देखा करते

‘राजीव’ देखा है वक्त का मौसम खूब बदलते
नादां है जो वक्त के साथ नहीं चला करते 
    

Friday 3 June 2016

हजारों गम हैं




एक नहीं हजारों गम हैं किस किसको कहेंगे
पहले भी हजारों सहे हैं इस बार भी सहेंगे

जमाने के साथ कदम मिलाकर न चल पाए
दोष खुद का हो तो औरों को क्या कहेंगे

हथेली से रेत की मानिंद फिसलती जाए है
जिंदगी क्या इस तरह गुजर न जाएंगे  

तुम नहीं हम अकेले और बहती दरिया है
सुनसान गीतों के छंद किनारे पहुँच पाएंगे

‘राजीव’ फ़कत चुपचाप हैं पेड़ पत्ते बोलते हैं
दर्दे दिल की शमा आँधियों से न बुझ जाएंगे 
    

Friday 5 February 2016

घिर आए हैं ख्वाब





घिर आए हैं
ख्वाब फिर
उनींदी पलकों में

फागुनी खुशबुओं में लिपटी
इन हंसी ख्वाबों से
रेशमी चुनर बुन
पहना दूं क्या ?

धरती से आकाश तक
सज गई है
किरणों की महफ़िल
बज उठता है मधुर संगीत

चांदनी रातों के
मोरपंखी ख्वाबों से
जुड़ जाता है
प्रीत का रीत 



Saturday 9 January 2016

जैसे हिलती सी परछाई

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याद अभी भी है वह क्षण
जब मेरे सम्मुख आई
निश्चल,निर्मल रूप छटा सी
जैसे हिलती सी परछाई

गहन निराशा,घोर उदासी
जीवन में जब कुहरा छाया
मृदुल,मंद तेरा स्वर गूंजा
मधुर रूप सपनों में आया

कितने युग बीते,सपने टूटे
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने
किसी परी सा रूप तुम्हारा
भूला वाणी,स्वर पहचाने

पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुख आई
निश्चल,निर्मल रूप छटा सी
जैसे हिलती सी परछाई 
    
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